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आयुर्वेद इलाज में ब्राह्मी की बढ़ी मांग, ऐसे करें खेती तो होगा भरपूर लाभ
आयुर्वेद इलाज में ब्राह्मी की बढ़ी मांग, ऐसे करें खेती तो होगा भरपूर लाभ
आयुर्वेद में ब्राह्मी का एक विशेष स्थान है। इसलिए औषधीय पौधों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। पौधों की लंबाई 2 से 3 फिट होती है। इनके फूलों का रंग सफेद, हल्का नीला एवं हल्का पीला होता है। पत्तियों का स्वाद फीका होता है। ठंडी तासीर होने के कारण पाचन से जुड़ी समस्याओं में इसका सेवन लाभप्रद होता है। इसके साथ ही यह कैंसर, दमा, मिरगी, एनीमिया आदि रोगों में भी लाभदायक सिद्ध होता है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से ब्राह्मी की खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करें।
ब्राह्मी की खेती के लिए उपयुक्त समय
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इसकी बुवाई के लिए जून-जुलाई महीना उपयुक्त है।
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उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
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ब्राह्मी की खेती रेतीली दोमट मिट्टी, रेतीली मिट्टी एवं हल्की काली मिट्टी में की जा सकती है।
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पौधों के अच्छे विकास के लिए इसकी खेती अम्लीय मिट्टी में करें।
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पौधों को गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
खेत तैयार करने की विधि
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सबसे पहले मिट्टी पलटने वाली हल से एक बार गहरी जुताई करें।
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गहरी जुताई के बाद कुछ दिनों तक खेत को खुला रहने दें।
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इसके बाद 2 से 3 बार हल्की जुताई कर के खेत की मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें।
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आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 3 से 4 टन गोबर की खाद मिलाएं।
बुवाई की विधि
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ब्राह्मी की खेती बीज की बुवाई के साथ पौधों की रोपाई के द्वारा भी किया जा सकता है।
बीज की बुवाई
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अगर बीज के द्वारा खेती करनी है तो पौधों को प्रो-ट्रे नर्सरी में तैयार करें।
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बुवाई से पहले बीज को 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें। इससे अंकुरण में आसानी होती है।
पौधों की रोपाई
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प्रति एकड़ खेत में 25 हजार पौधों के कलम की आवश्यकता होती है।
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मुख्य खेत में पौधों की रोपाई पनीरी के माध्यम से करें।
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पौधों से पौधों की दूरी 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
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प्रत्येक लाइन के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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वर्षा के ऋतु में वर्षा होने पर फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
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गर्मी के मौसम में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
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ठंड के मौसम में 18 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
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ब्राह्मी एक औषधीय पौधा है इसलिए खरपतवार पर नियंत्रण के लिए हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
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निराई-गुड़ाई के द्वारा खेत में खरपतवार पर नियंत्रण करें।
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पौधों की रोपाई के 25 से 30 दिनों बाद निकलने वाले खरपतवारों को हाथ से निकालने का प्रयास करें। इससे पौधों की जड़ों को नुकसान नहीं पहुंचेगा।
पौधों की कटाई
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पौधों की रोपाई के 5 महीने बाद फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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भूमि की सतह से 4-5 सेंटीमीटर की ऊंचाई से कटाई करें।
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प्रतिवर्ष 2 से 3 बार पौधों की कटाई की जा सकती है।
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कटाई के बाद पौधों को छांव वाली जगह पर सुखाएं।
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