विटामिन सी से भरपूर आंवला की खेती भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। विटामिन सी के अलावा आंवला में कैल्शियम, फास्फोरस और पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आंवला का उपयोग अचार, मुरब्बा, जैम, जूस, कैंडी, आदि बनाने में किया जाता है। इसकी खेती किसानों के लिए बेहतर आमदनी का स्रोत बन सकती है। बात करें आंवला के पैदावार की तो उच्च गुणवत्ता यह फल प्राप्त करने के लिए पौधों को विभिन्न रोगों से बचाना आवश्यक है। आइए आंवले के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
उकठा रोग : पिछले कुछ वर्षों में कई क्षेत्रों में आंवले के पौधों में इस रोग के लक्षण नजर आए हैं। यह रोग फफूंद के द्वारा होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों के तने की छाल फटने लगती है। रोग बढ़ने पर पौधे सूखने लगते हैं। इस रोग से निजात पाने के लिए 15 लीटर पानी में 25 ग्राम देहात फुल स्टॉप मिलाकर छिड़काव करें।
मृदु सड़न रोग : दिसंबर से फरवरी महीने में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित फलों पर भूरे एवं काले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धब्बों का आकार गोल होता है। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है। 7-8 दिनों में इस रोग से प्रभावित फल पूरी तरह भूरे धब्बे से ढक जाते हैं। फलों का आकार विकृत हो जाता है। इस रोग पर नियंत्रण के लिए फलों की तुड़ाई के बाद एवं भंडारित करने से पहले फलों को 0.1 प्रतिशत डाइथेन एम 45 से उपचारित करें।
फल सड़न रोग : इस रोग से प्रभावित फलों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बे सूखने लगते हैं। रोग से प्रभावित हिस्सों पर रुई की तरह सफेद फफूंद नजर आने लगता है। प्रभावित फलों का अंदर का हिस्सा सूखा हुआ एवं गहरे भूरे रंग का नजर आता है। इस रोग से बचने के लिए आंवला के फलों को तोड़ने से 15 दिनों पहले 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें। फलों की तुड़ाई सावधानीपूर्वक करें। इस बात का ध्यान रखें कि तुड़ाई के समय फलों को क्षति न पहुंचे।
आंवले का टहनी झुलसा रोग : इस रोग का प्रकोप वर्षा के मौसम में अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित टहनियां ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं । नर्सरी में इस रोग का प्रकोप होने पर 50 प्रतिशत तक पौधे नष्ट हो सकते हैं। रोग के लक्षण नजर आने पर 0.1 प्रतिशत कार्बेंडाजिम का छिड़काव करें। इसके अलावा 0.1 प्रतिशत मैंकोजेब के छिड़काव से भी इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है। नर्सरी एवं बगीचे में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।
पत्ती धब्बा रोग : वर्षा के मौसम में इस रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है। शुरुआत में पत्तियों पर पानी की तरह धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने पर पत्तियों के सिरे जले हुए नजर आने लगते हैं। इस रोग पर नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत कैप्टान का छिड़काव करें। इसके अलावा 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के छिड़काव से भी इस रोग पर नियंत्रण कर सकते हैं।
हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यदि आपको इस पोस्ट में दी गई जानकारी पसंद आई है तो इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अधिक से अधिक किसानों तक यह जानकारी पहुंच सके और अन्य किसान मित्र भी आंवले के पौधों को इन रोगों से बचा सकें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें। अपने आने वाले पोस्ट में हम आंवले की खेती से जुड़ी कुछ अन्य जानकारियां साझा करेंगे। तब तक पशुपालन एवं कृषि संबंधी अधिक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।
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