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आलू की बुवाई से खुदाई तक की जानकारी
आलू की बुवाई से खुदाई तक की जानकारी
आलू सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। केरल और तमिलनाडु के अलावा आलू की खेती पूरे भारत में की जाती है। आलू की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए किसानों को इसकी बुवाई, सिंचाई, खुदाई आदि की जानकारी होना आवश्यक है।
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आलू की खेती के लिए जीवांश युक्त बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है।
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इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाले खेतों का चयन करें।
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इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बुवाई के लिए इस्तेमाल होने वाले बीज रोग मुक्त हों।
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रोग और संक्रमण रहित उन्नत किस्म की बीजों से आलू की पैदावार अच्छी होती है।
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इसकी बुवाई के लिए सितंबर के आखिरी सप्ताह से अक्तूबर के तीसरे सप्ताह तक का समय सर्वोत्तम होता है।
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बुवाई के पूर्व खेत की आखिरी जुताई के समय 35 किलोग्राम यूरिया, 80-90 किलोग्राम डीएपी एवं 60 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए।
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आलू की 2 पंक्तियों के बीच गेहूं जैसी फसल लगा कर मिश्रित खेती भी की जा सकती है।
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बुवाई से पूर्व बीज कन्दो को जरूर उपचरित करना चाहिए।
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इसकी बुवाई के एक सप्ताह बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए।
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बीज अंकुरण से पूर्व खरपतवार की रोकथाम के लिए 200 ग्राम मेट्रीब्युजिन 70% डबल्यूपी या पेंडिमेथलिन 30% ई.सी 400-500 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए।
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पहली सिंचाई के बाद लगभग 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
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इसकी फसल पर ठंड का ज्यादा होता है। मिट्टी गीली होने से ठंड का असर कम होता है इसलिए ठंड बढ़ने पर इसकी सिंचाई कर देनी चाहिए।
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खुदाई से करीब दो सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।
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पौधों की पत्तियां पीली होने लगे तब इसकी खुदाई कर लेनी चाहिए।
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आलू की पैदावार उनके विभिन्न किस्मों पर निर्भर करता है।
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प्रति हेक्टेयर जमीन से सामान्य किस्मों से लगभग 300 से 350 क्विंटल और संकर किस्मों से लगभग 350 से 600 क्विंटल आलू प्राप्त कर सकते हैं।
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