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आंवला : इस तरह करें पौधों में लगने वाले रोगों पर नियंत्रण
आंवला : इस तरह करें पौधों में लगने वाले रोगों पर नियंत्रण
आंवले का मुरब्बा हो या अंचार, इसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। इसके अलावा आंवला से चटनी, जूस, कैंडी, आदि खाद्य पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं। केवल इतना ही नहीं, कई औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं एवं सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी किया जाता है। लेकिन कई बार कुछ घातक रोगों के कारण आंवला की फसल को भारी क्षति पहुंचती है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम आंवला के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
आंवला के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग
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फल सड़न रोग : इस रोग को फल फफूंदी रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक जीवाणु जनित रोग है। इस रोग के लक्षण आंवला के फलों पर नजर आते हैं। इस रोग से बचने के लिए आंवला के फलों को तोड़ने से 15 दिनों पहले 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें। इस रोग पर नियंत्रण के लिए 15 लीटर पानी में 25 ग्राम देहात फुल स्टॉप मिलाकर छिड़काव करें। इसके अलावा 15 लीटर पानी में 30 ग्राम साफ नामक मिला कर भी छिड़काव कर सकते हैं।
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कुंगी रोग : इस रोग के लक्षण पत्तियों के साथ फलों पर भी देखे जा सकते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों एवं फलों पर लाल रंग के धब्बे नजर आने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ यह धब्बे पूरे वृक्ष में फैलने लगते हैं। इस रोग पर नियंत्रण के लिए 15 लीटर पानी में 30 ग्राम मैंकोजेब - इंडोफिल एम-45 0.3 प्रतिशत मिला कर छिडकाव करें। आवश्यकता होने पर 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।
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अंदरूनी गलन रोग : विभिन्न क्षेत्रों में इसे काला धब्बा रोग के नाम से भी जाना जाता है। बोरोन की कमी इस रोग के होने का प्रमुख कारण है। होने पर पत्तियों एवं फलों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे धब्बे काले रंग में बदलने लगते हैं। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए 0.6 प्रतिशत बोरोन का प्रयोग करें।
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