धान की सीधी बुवाई तकनीक से किसानों को होगा फायदा
कम समय में पकने वाली किस्में
धान की बुवाई मानसून आने के पूर्व (15-20 जून) अवश्य कर लेना चाहिए, ताकि बाद में अधिक नमी या जल जमाव से पौधे प्रभावित न हो। इसके लिए सर्वप्रथम खेत में हल्का पानी देकर उचित नमी आने पर आवश्यकतानुसार हल्की जुताई या बिना जोते जीरो टिल मशीन से बुवाई करनी चाहिए। जुताई यथासंभव हल्की एवं डिस्क है रो से करनी चाहिए या नानसेलेक्टिव खरपवतवारनाशी (ग्लाईफोसेट / पैराक्वाट) प्रयोग करके खरपतवारों को नियंत्रित करना चाहिए। खरपतवारनाशी प्रयोग के तीसरे दिन बाद पर्याप्त नमी होने पर बुवाई करनी चाहिए। जहां वर्षा से, या पहले ही खेत में पर्याप्त नमी मौजूद हो, वहां आवश्यकतानुसार खरपतवार नियंत्रण हेतु हल्की जुताई या प्रीप्लान्ट नानेसेलेक्टिभ खरपवनारनाशी ग्लाइसेल या ग्रेमेकसोन 2.0-2.5 ली. प्रति हे. छिडक़ाव करके 2-3 दिन बाद मशीन से बुवाई कर देनी चाहिए।
ऐसे करें खेत की तैयारी
खेत को दो-तीन जुताई लगाकर तैयार करें। ड्रिल से 3-5 सेमी गहराई पर बिजाई करें। खेत की तैयारी एवं बिजाई शाम को करें। ड्रिल से 2-3 सेमी गहराई पर बिजाई करें। बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। चार-पांच दिन बाद फिर सींचे। बिजाई के तुरंत बाद व सूखी बिजाई में 0-3 दिन बाद पैंडीमैथालीन 1.3 लीटर प्रति एकड़ स्प्रे करें। वैज्ञानिकों के अनुसार सीधी बिजाई में रोपाई वाली धान की बजाए ज्यादा खरपतवार आते हैं और वे भिन्न भी होते हैं। दोनों अवस्था में 15 से 25 बाद बिस्पायरीबैक 100 एमएल प्रति एकड़ स्प्रे करें।
कम पानी में पैदा होने वाली धान किस्मों का चयन / धान के प्रकार
धान की कई किस्में ऐसी है जो कम पानी में भी आसानी से उगाई जा सकती है। किसान को इसका चयन अपने राज्य की भौगोलिक स्थिति व दशा को देखते हुए किया जाना चाहिए। इस आधार पर धान की प्रमुख कम पानी में उगाई जा सकने वाली किस्में इस प्रकार है-
असिंचित दशा: नरेन्द्र-118, नरेन्द्र-97, साकेत-4, बरानी दीप, शुष्क सम्राट, नरेन्द्र लालमनी।
सिंचित दशा: सिंचित क्षेत्रों के लिए जल्दी पकने वाली किस्मों में पूसा-169, नरेन्द्र-80, पंत धान-12, मालवीय धान-3022, नरेन्द्र धान-2065 और मध्यम पकने वाली किस्मों में पंत धान-10, पंत धान-4, सरजू-52, नरेन्द्र-359, नरेन्द्र-2064, नरेन्द्र धान-2064, पूसा-44, पीएनआर-381 प्रमुख किस्में हैं।
ऊसरीली भूमि के लिए धान की किस्में: नरेन्द्र ऊसर धान-3, नरेन्द्र धान-5050, नरेन्द्र ऊसर धान-2008, नरेन्द्र ऊसर धान-2009 प्रमुख किस्में हैं।
धान की बुवाई करने से पहले जीरो टिल मशीन का संशोधन कर लेना चाहिए, जिससे बीज और उर्वरक निर्धारित मात्रा और गहराई में पड़े। ज्यादा गहराई होने पर अंकुरण और कल्लों की संख्या कम होगी, जिससे धान की पैदावार पर प्रभाव पड़ेगा। 2. बुवाई के समय, ड्रिल की नली पर विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इससे रुकने पर बुवाई ठीक प्रकार नहीं हो पाती है, जिससे कम पोधे उगेंगे और उपज कम हो जाएगी।
यूरिया और म्यूरेट आफ पोटाश उर्वरकों का प्रयोग मशीन के खाद बक्से में नहीं रखना चाहिए। इन उर्वरकों का प्रयोग टाप ड्रेसिंग के रूप में धान पोधों के स्थापित होने के बाद सिंचाई के बाद करना चाहिए।
बुवाई करते समय पाटा लगाने की जरूरत नहीं होती, इसलिए मशीन के पीछे पाटा नहीं बांधना चाहिए।
सीधी बुवाई तकनीक से ये होगा फायदा
धान की सीधी करने से धान की नर्सरी उगाने में होने वाला खर्च बच जाता है। इस विधि में जीरो टिल मशीन द्वारा 20-25 किग्रा. बीज प्रति/ हैक्टेयर बुवाई के लिए पर्याप्त होता है। खेत को जल भराव कर लेव के लिए भारी वर्षा या सिंचाई जल की जरूरत नहीं पड़ती है। नम खेत में बुवाई हो जाती है। धान की लेव और रोपनी का खर्च भी बच जाता है। समय से धान की खेती शुरू हो जाती है और समय से खेत खाली होने से रबी फसल की बुवाई सामयिक हो जाती है जिससे उपज अधिक मिलती है। लेव करने से खराब हुई भूमि की भौतिक दशा के कारण रबी फसल की उपज घटने की परिस्थिति नहीं आती है। रबी फसल की उपज अधिक मिलती है।
धान की जीरो टिलेज से बुवाई करते समय ये रखें सावधानियां
धान की जीरो टिलेज से बुवाई करते समय किसान को कुछ सावधानियां अपनानी चाहिए। बुवाई के पहले ग्लाइफोसेट की उचित मात्रा को खेत में एक समान छिडक़ना चाहिए। ग्लाइफोसेट के छिडक़ाव के दो दिनों के अंदर बरसात होने पर, या नहर का पानी आ जाने पर दवा का प्रभाव कम हो जाता है। खेत समतल तथा जल निकासयुक्त होना चाहिए अन्यथा धान की बुवाई के तीन दिनों के अंदर जल जमाव होने पर अंकुरण बुरी तरह प्रभावित होता है।
धान की फसल को खरपतवार से ऐसे बचाएं / चावल की फसल
धान की फसल में खरपतवार की समस्या अधिक होती है इसके लिए किसान को कुछ उपाय अपनाने चाहिए ताकि इसकी समस्या कम से कम रहे। धान की सीधी बुवाई जीरो टिलेज से खरपतवार की हो जाती है। क्योंकि लेव न होने से इनका अंकुरण सामान्य की अपेक्षा ज्यादा होता है। बुवाई के बाद लगभग 48 घंटे के अंदर पेन्डीमीथिलिन की एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लीटर पानी में छिडक़ाव करना चाहिए। छिडक़ाव करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमीं होनी चाहिए और समान्य रूप से सारे खेत में छिडक़ाव करना चाहिए। ये दवाएं खरपतवार के जमने से पहले ही उन्हें मार देती हैं। बाद में चोड़ी पत्ती की घास आए तो उन्हें, 2, 4-डी 80 प्रतिशत सोडियम साल्ट 625 ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए।